Saturday, 15 November 2025

अकाल मृत्यु क्यूँ होती है?

   क्या आपने कभी सोचा है कि किस कारण से कुछ लोगों की मृत्यु बहुत कम आयु में ही हो जाती है, जबकि कुछ लोग बहुत लंबे समय तक जीते हैं? 

🔹 गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु के विषय में क्या कहा गया है ?

🔹 क्या अकाल मृत्यु के बाद आत्मा को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है? 

🔹 अकाल मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है, उसके साथ क्या-क्या होता है ?

🔹 किन कारणों से अकाल मृत्यु का योग बनता है और हिंदू धर्म ग्रंथों में अकाल मृत्यु से बचने के क्या उपाय बताए गए हैं? 

अकाल मृत्यु से जुड़े इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर जानेंगे।
  प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा की ओर से एक निश्चित आयु मिली हुई है। पूर्व जन्म के कर्मों के कारण यदि व्यक्ति कम उम्र में ही हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना या रोग से मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसे अकाल मृत्यु कहते हैं। इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु को प्राप्त होने तक और फिर मृत्यु के बाद उस आत्मा का स्वर्ग या नरक में जाने के बाद पुनः जीवन प्राप्त करने की प्रक्रिया को हिंदू धर्म शास्त्रों में सात चरणों में बांटा गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो आत्मा एक बार शरीर धारण करती है, उसे दूसरा शरीर प्राप्त करने से पहले इन सात चरणों से गुजरना पड़ता है। इसी को जीवन चक्र कहते हैं। वह आत्माएँ जो इन सातों चरणों को पूरा नहीं कर पातीं, बहुत कष्ट पाती हैं। अकाल मृत्यु  को प्राप्त होने से यह क्रम बिगड़ जाता है। जिन व्यक्तियों की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से होती है, उनकी आत्मा भटकती नहीं है और नियमानुसार उनके जीवन के सात चरण पूरे हो चुके होते हैं।

उसे भूत कहा जाता है और अतीत में अटकी आत्मा भूत बन जाती है। जीवन ना अतीत है और ना भविष्य, वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में है, वह मुक्ति की ओर अपने आप ही बढ़ रहा है। परंतु जो आत्मा अतीत में अटक गई है, वह अनिश्चित काल के लिए प्रेत योनि को प्राप्त होती है।

मान्यताओं के अनुसार जब कोई स्त्री प्रसव से मरती है, तो चूड़ैल बन जाती है। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली होती है, मरने के बाद उसकी आत्मा डायन बनती है। ऐसी आत्माओं को मुक्ति ना मिलने की वजह है उनके सगे संबंधियों द्वारा उनके निमित्त श्राद्ध ना किया जाना। इसी तरह जब कोई पुरुष मरता है, तो वह भूत, ब्रह्म राक्षस या पिशाच हो जाता है। जो व्यक्ति भूख, प्यास और संभोग सोचते हुए मरते है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना और आत्महत्या आदि से मरता है, वह भी भूत बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते, वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं। परेशानी का अर्थात यहाँ भूत दिखने से नहीं है अपितु घर में अनेक परेशानियों से है

आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं: जीवात्मा, सूक्ष्म आत्मा और प्रेतात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है, उसे जीवात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्म कर्म शरीर में प्रवेश करती है, तब उसे सूक्ष्म आत्मा कहते हैं। किंतु जब यही जीवात्मा वासना और कामना मय शरीर में निवास करने लगती है, तो उसे प्रेतात्मा कहते हैं।

ज्योतिष जानकारों का मत है कि कुछ लोगों की जन्म कुंडली में अल्पायु लिखी होती है। यह उनके पूर्व जन्म का कर्म होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है। इसके लिए आपको ज्योतिष की मदद लेनी चाहिए। चलिए जानते हैं उन ज्योतिष शास्त्र के उपायों को, जिनसे अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली का छठा भाव रोग का तथा आठवाँ भाव मृत्यु का और 12वाँ भाव शारीरिक व्यय व पीड़ा का भाव माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के लग्न में मंगल हो और उस पर सूर्य या शनि की दृष्टि हो, तो उस व्यक्ति की मृत्यु किसी दुर्घटना में होने की आशंका अधिक रहती है। अकाल मृत्यु से बचने का उपाय भी हमारे धार्मिक ग्रंथों… में बताया गया है। यदि किसी जातक की कुंडली में अकाल मृत्यु का योग होता है, तो उस व्यक्ति को भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। शिवजी की पूजा करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। वहीं, अकाल मृत्यु का भय हो तो जातक को जल में तिल और शहद मिलाकर हर सोमवार को भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इसी के साथ ही महामृत्युंजय मंत्र और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करना चाहिए। ये सारे उपाय व्यक्ति को पूर्ण श्रद्धा एवं आस्था से करने चाहिए, अन्यथा इन उपायों का कोई फल नहीं मिलता।
यदि किसी व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय हो, तो उसे मंगलवार और शनिवार को काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी पका लेनी चाहिए। उसके बाद गुड़ और तेल में वह रोटी मिलाकर, जिस भी व्यक्ति की अकाल मृत्यु की आशंका हो, उसके सिर से सात बार उस रोटी को उतारकर उसे भैंस को खिला देना चाहिए। भैंस यमराज का वाहन है। ऐसा माना जाता है कि इससे अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है।

इसके अलावा, जिस व्यक्ति को बिना कारण ही मृत्यु का भय सताता हो, तो उसे गुड़ और आटे के गुलगुले बनाकर अपने सिर से सात बार उतारकर चील या कौए को खिला देना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, अकाल मृत्यु से बचने के लिए जातक को शनिदेव की पूजा करनी चाहिए।