Thursday, 20 July 2023

हनुमानजी अजर अमर यानी चिरंजीवि कैसे हुए...??


आठ महामानवों को पृथ्वी पर चिरंजीवि माना जाता है- अश्व।त्थामा, बलि, व्यासजी, हनुमानजी,विभीषण, परशुरामजी, कृपाचार्य और महामृत्युंजय मंत्र के रचयिता मार्कंडेय जी। हनुमानजी के चिरंजीवि होने की कथा संक्षेप में कथा को कभी रामचरितमानस की चौपाइयों और रामायण के उद्धरणों के साथ विस्तार से भी सुनाऊंगा उसमें आपको ज्यादा आनंद आएगा। हनुमानजी सीताजी को खोजते-खोजते अशोक वाटिका पहुंच गए। विभीषणजी से उन्हें लंका के बारे में संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो ही चुका था।
पवनसुत ने भगवान श्रीराम द्वारा दी हुई मुद्रिका चुपके से गिराई। रामचरित मानस को देखें तो हनुमानजी के अशोक वाटिका में पहुंचने के प्रसंग से ठीक पहले का प्रसंग है रावण के वहां अपनी रानियों और सेविकाओं के साथ आने का। वह माता सीता को तरह-तरह का प्रलोभन देता है ।
उन्हें पटरानी बनाने की बात कहता है और समस्त रानियों को उनकी सेवा में तैनात कर देने की बात  कहता है।
परंतु सीताजी प्रभावित नहीं होतीं तो वह उन्हें डराने का दुस्साहस करता है. चंद्रमा के समान तेज प्रकाशवान चंद्रहास खड़ग निकालकर माता को डराता है और उन्हें एक मास का समय देता है

विचार का, उसके बाद वह या तो उनके साथ बलपूर्वक विवाह करेगा अन्यथा वध कर देगा। माता सीता सशंकित है कुछ भयभीत भी. संकट के समय में भयभीत होना सहज स्वभाव है. तभी हनुमानजी वहां पहुंचे हैं. वृक्ष पर छुपकर बैठे हैं और उचित समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

हनुमानजी के साथ तीन उलझनें हैं -
पहला तो माता सीता बहुत भयभीत हैं इसलिए यदि वह अचानक वहां पहुंच जाएं तो उन्हें देखकर माता और भयाक्रांत हो जाएंगी। हनुमानजी तो स्वयं को सेवक के भाव से देखते थे। सेवक अपने स्वामी के आदेश से आया है वह भी उसकी प्राणप्रिया की सुध लेने। जिसकी सुध लेने आया है उसे भयभीत कैसे कर दें।

दूसरी उलझन, हनुमानजी के समक्ष एक उलझन है कि माता के समक्ष प्रथम बार जा रहा हूं. वानरकुल को ऐसे ही अशिष्ट माना जाता है. कहीं माता मेरे किसी आचरण को अशिष्टता या उदंडता न समझ लें. अगर आज के तौर-तरीके में कहूं तो उनके समक्ष भी वही उलझन है जो हमारे समक्ष होती है- तो क्या सर्वथा उचित व्यवहार, संबोधन आदि होगा. यह सब सोच रहे हैं।

तीसरी उलझन, मैं किस भाषा का प्रयोग करूं अपनी बात कहने के लिए. रावण को उन्होंने उत्तम संस्कृत भाषा का प्रयोग करते सुना है. तो यदि वह भी संस्कृत भाषा बोलते हैं तो कहीं उन्हें भी रावण का भेजा हुआ
कोई मायावी समझकर माता क्रोध में चिल्लाने लगें और रक्षकों की नींद खुल जाए. किष्किंधा की बोली का प्रयोग करूं तो माता के लिए यह अपिरिचत लगेगा. बहुत विचार करने पर वह अयोध्या की भाषा का प्रयोग करते हैं।

संवाद बहुत काम करता है. जब ऋष्यमूक पर उनकी भेंट श्रीराम-लक्ष्मणजी से हुई थी
तो वह एक ब्राह्मण का वेष धरकर पहुंचे थे और उत्तम संस्कृत भाषा का प्रयोग कर रहे थे तब श्रीराम ने कहा था कि इनकी वाणी में जितनी मिठास है उतनी ही सुंदर शैली, उतना ही उच्चकोटि का व्याकरण प्रयोग. ऐसे व्यक्ति यदि जिस राजा के मंत्री हों वह राजा कभी दुखी हो ही नहीं सकता।
तो हनुमानजी ने मुद्रिका गिराई और माता की प्रतिक्रिया को बड़े गहराई से देखा. तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।।
चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥
तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर श्रीरामजी की अँगूठी देखी. अँगूठी को पहचानकर सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं. माता विभोर हैं, चकित हैं कि ये कहां से आई।
यदि रामनाम के रस में डूबते हैं या रामनाम रसधारा की महिमा का आनंद लेना है तो इन तीन चौपाइयों के लिए आप तुलसीबाबा को उनकी भक्ति को देखते हुए श्रीहनुमानजी के समकक्ष रामभक्त मान लेंगे।

जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥
सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना

सीताजी विचारने लगीं- श्री रघुनाथजी तो सर्वथा अजेय हैं, उन्हें कौन जीत सकता है? और माया से ऐसी अँंगूठी बनाई ही नहीं जा सकती. सीताजी मन में अनेक प्रकार के विचार कर रही थीं. इसी समय हनुमान्‌जी मधुर वचन बोले-

रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥

वे श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, (जिनके) सुनते ही सीताजी का दुःख भाग गया. वे कान और मन लगाकर उन्हें सुनने लगीं. हनुमान्‌जी ने आदि से लेकर अब तक की सारी कथा कह सुनाई
जय सिया राम ❤



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