उसके बाद जलचर प्राणियों के रूप में ९ लाख बार जन्म होता है हाथ और पैरों से रहित देह और मस्तक। सड़ा गला मांस ही खाने को मिलता है एक दूसरे का मास खाकर जीवन रक्षा करते हैं उसके बाद कृमि योनि में १० लाख बार जन्म होता है!
और फिर ११ लाख बार पक्षी योनि में जन्म होता है।
वृक्ष ही आश्रय स्थान होते हैं जोंक, कीड़-मकोड़े, सड़ा गला जो कुछ भी मिल जाय, वही खाकर उदरपूर्ति करना। स्वयं भूखे रह कर संतान को खिलाते हैं और जब संतान उडना सीख जाती है तब पीछे मुडकर भी नहीं देखती । काक और शकुनि का जन्म दीर्घायु होता है,
उसके बाद २० लाख बार पशु योनि,वहाँ भी अनेक प्रकार के कष्ट मिलते हैं । अपने से बडे हिंसक और बलवान् पशु सदा ही पीडा पहुँचाते रहते हैं,
भय के कारण पर्वत कन्दराओं में छुपकर रहना।
एक दूसरे को मा रकर खा जाना, कोई केवल घास खाकर ही जीते हैं । किन्ही को हल खीचना, गाडी खीचना आदि कष्ट साध्य कार्य करने पडते हैं।
रोग शोक आदि होने पर कुछ बता भी नहीं सकते।सदा मल मूत्रादि में ही रहना पडता है,
गौ का शरीर समस्त पशु योनियों में श्रेष्ठ एवं अंतिम माना गया है तत्पश्चात् ४ लाख बार मानव योनि में जन्म होता है । इनमे सर्वप्रथम घोर अज्ञान से आच्छादित ,पशुतुल्य आहार -विहार,वनवासी वनमानुष का जन्म मिलता है। उसके बाद पहाडी जनजाति के रूप में नागा,कूकी,संथाल आदि में उसके बाद वैदिक धर्मशून्य अधम कुल में ,पाप कर्म करना एवं मदिरा आदि निकृष्ट और निषिद्ध वस्तुओं का सेवन ही सर्वोपरि उसके बाद शूद्र कुल में जन्म होता है। उसके बाद वैश्य कुल में फिर क्षत्रिय और अंत में ब्राह्मणकुल में जन्म मिलता है और सबसे अंत में ब्राह्मणकुल में जन्म मिलता है यह जन्म एक ही बार मिलता है जो ब्रह्मज्ञान सम्पन्न है वही ब्राह्मण है।अपने उद्धार के लिए वह आत्मज्ञान से परिपूर्ण हो जाता है।
यदि,,, इस दुर्लभ जन्म में भी ज्ञान नहीं प्राप्त कर लेता तो पुनः चौरासी लाख योनियों में घूमता रहता है।
भगवत - शरणागति के अलावा कोई और सरल उपाय नहीं है यह मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है। बहुत लम्बा सफर तय करके ही यहाँ तक पहुँचे हैं ।
अतः अपने मानव जीवन को सार्थक बनाइये, हरिजस गाइये...!
जय सनातन धर्म✨🕉️⚡🙏
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