।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी_व्रत ।।
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सामन्य गृहस्थ/ स्मार्त का व्रत तारीख ६ बुधवार को है।
वैष्णवो का व्रत तारीख ७ गुरुवार को है।
जन्माष्टमी के ऊपर दो मत है
#स्मार्त संप्रदाय के अनुसार
और
#वैष्णव संप्रदाय के अनुसार।
सरलतम भाषा मे कहे तो जो दो मत के नाम पढकर स्वयं कौन से संप्रदाय के है यह खोज रहे है वह सभी स्मार्त है।
स्मार्त और वैष्णव की परिभाषा धर्म शास्त्रीय ग्रंथों के आधार पर हमें ग्रहण करनी होगी स्मार्त का अर्थ है जो स्मृति ग्रंथो के अनुसार आचरण करें अर्थात गृहस्थी लोग।
और वैष्णव का अर्थ है जो वैखानस,पंचरात्रादी शास्त्रों के आधार पर आचरण करे वैष्णव दिक्षा प्राप्त अथवा जो संन्यास ग्रहण चुके हैं।
वैष्णव का अर्थ भगवान विष्णु की पूजा करने वाले कदापि नहीं है। बल्कि जो संन्यस्त हैं, सन्यास में ‘दीक्षित’ हैं / वैष्णव परंपरा मे ‘दीक्षित’ वही धर्म शास्त्रीय मतानुसार वैष्णव कहे गये हैं ।
यह दोनों व्याख्याएं बहुत प्राचीन है।
अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है की जन्माष्टमी व्रत कौन किस दिन करें।
इसमें निम्न स्थितियां स्मार्त संप्रदाय के अनुसार है:--
१.यदि अष्टमी पहले दिन अर्ध रात्रि काल में चंद्रोदय के समय हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन करें।
२. यदि अष्टमी केवल दूसरे दिन ही चंद्रोदय के समय हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन करें।
३. यदि अष्टमी तिथि दोनों दिन अर्ध रात्रि में चंद्रोदय के समय हो और रोहिणी का योग एक भी दिन ना हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन करें।
४. यदि अष्टमी तिथि दोनों दिन अर्ध रात्रि में चंद्रोदय के समय हो और रोहिणी का योग एक ही दिन अर्धरात्रि में हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी योग वाले दिन करें।
५. यदि दोनों दिन अर्धरात्रि में चंद्रोदय के समय अष्टमी हो और दोनों दिन अर्धरात्रि में रोहिणी का योग भी हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन करें।
६. यदि दोनों दिन अष्टमी अर्धरात्रि में चंद्रोदय के समय न हो तो इस स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन ही होगा।
कुछ लोग कहीं-कहीं के संस्कृत वाक्य उठा उठा कर के लिख रहे हैं।
उन्हें उन वाक्यों के प्रसंग का बिल्कुल ख्याल नहीं है वह वाक्य या तो संन्यासियों के विषय में कहे गए हैं या उन्होंने पूरे प्रकरण को ध्यान से नहीं पढ़ा है।
पहले अज्ञानता के कारण अष्टमी का व्रत करके अगले दिन गोगा नवमी का पूजन किया जाता था।
जबकि हकीकत यह है कि गोगा नवमी का पूजन सूर्योदय कालीन नवमी के दिन ही किया जाता है और जन्माष्टमी का व्रत अर्धरात्रि में अष्टमी हो और चंद्रोदय हो उस दिन किया जाता है।
यह दोनों पर अलग-अलग है। इनका मुहूर्त भी अलग-अलग दिन हो सकता है।
व्रतों के निर्णय में पुराणों के छिटपुट वाक्य प्रमाण नहीं माने जा सकते।
इस विषय पर #धर्मसिंधु, #निर्णयसिंधु ,#कालमाधव, #पुरुषार्थचिंतामणि, #तिथिनिर्णय आदि विशेष ग्रंथों में हमारे पूर्वजों ने बहुत खोजबीन कर ही निर्णय दिया गया है इसका सारांश मैंने जन्माष्टमी व्रत के विषय में ऊपर लिख दिया।
#प्रमाण---
मासे भाद्रपदेऽष्टम्यां निशीथे कृष्णपक्षगे।
--- भागवत पुराण
उपोष्य जन्मचिन्हानि कुर्याज्जागरणं तु य:।अर्धरात्रयुताष्टम्यां सोऽश्वमेधफलं लभेद्।
---नारद पुराण
वर्जनीया प्रयत्नेन सप्तमीयुताष्टमी....
यह पूर्वविद्धा परविद्धा का मत का ग्रहण तभी किया जाता है जब तिथि दोनों दिन कर्मकाल में व्याप्त या अव्याप्त हो--उभयत्र कर्मकालव्याप्तौ अव्याप्तौ वा युग्मवाक्यादिना पूर्वविद्धाया: परविद्धाया: वा तिथे: गृराह्यत्वम्
-- धर्मसिंधु:
उदये चाष्टमी किंचित्सकला नवमी यदि....
यहां उदये का अर्थ चंद्रोदय से ही है---
उदये= चन्द्रोदये इति व्याख्येयम् ,"अर्धरात्रे तु योगोऽयं तारापत्युदये सति"
--इति विष्णुधर्मोक्ते-- भट्टोजिदीक्षित (तिथिनिर्णय ग्रंथे )
और भी--
सामान्यत जन्माष्टमी,जयन्ती और शिवरात्रि सप्तमीविद्धा ही प्रशस्त है
जन्माष्टमी जयन्ती च शिवरात्रिस्तथैव च।
पूर्वविद्धैव कर्त्तव्या तिथिभान्ते च पारणम्।।
--- भृगु।
और भी--
सप्तमीविद्धा अष्टमी में ही उपवास करें-
जयन्त्यां पूर्वविद्धायां
उपवासं समाचरेत्- पद्मपुराण
रोहिणी नक्षत्र--
रोहिणी नक्षत्र का योग न होने पर रात्रि में चन्द्रोदयअष्टमी में ही है व्रत करना चाहिए , अगले दिन रोहिणी नक्षत्र हो लेकिन रात में चन्द्रोदय में अष्टमी न हो तो अर्थहीन है--
रोहिणीयोगाऽभावेऽपि अर्द्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी ग्राह्या। परदिने नक्षत्रयोग: अकिंचित्कर:-- मीमांसक भट्टोजिदीक्षित।
अतः सामान्य गृहस्थि स्मार्त का व्रत तारीख ६ बुधवार को निर्विवाद रूप से है।
(यह लेख समस्त व्रत विषयक ग्रंथों का सार है जो आजीवन काम आएगा। विज्ञ इसे सुरक्षित रखें)
#KrishnaJanmashtami
हर हर महादेव 🙏🚩
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