Tuesday, 31 October 2023

आइये जाने वास्तु शाश्त्रों की सम्पूर्ण जानकारी ?

वास्तु सम्बन्धी आवश्यक जानकारी 

1. भूमि का ढ़लान उत्तर व पूर्व में तथा छत की ढ़लान ईशान में शुभ होती है ।

 2. भूखण्ड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जलस्रोत, बोरिंग,  तालाब व बावड़ी शुभ होती है।

 3. आयताकार, वृत्ताकार व गोमुख भूखण्ड गृह-निर्माण के लिये शुभ होता है वृत्ताकार भूखण्ड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिये।

4. सिंहमुखी भूखण्ड व्यावसायिक भवन हेतु शुभ होता है।

5. भूखण्ड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ होता है।

6. भूखण्ड के उत्तर या पूर्व में मार्ग शुभ होता है। दक्षिण या पश्चिम में मा व्यापारिक स्थल के लिये शुभ होते हैं।

7. यदि आवासीय परिसर में बेसमेन्ट का निर्माण कराना हो तो उसे उत्तर पूर्व में ब्रह्मस्थान को बचाते हुये बनाना चाहिये। बेसमेन्ट की ऊँचाई क से कम 9 फीट होनी चाहिये तथा वह तल से 3 फीट ऊपर होना चाहिये जिससे उसमें प्रकाश व हवा का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।

8. भवन के प्रत्येक मंजिल के छत की ऊँचाई 12 फीट होनी चाहिये किन्तु  यह 10 फीट से कम कदापि नहीं होनी चाहिये।

9. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊँचा होना चाहिये एवं पश्चि भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊँचा होना चाहिये। भवन में नैर्ऋत्य सबसे ऊँ व ईशान सबसे नीचा होना चाहिये।

10. खिड़कियाँ घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में क संख्या में होनी चाहिये ।

11. घर के ब्रह्मस्थान (घर का मध्य भाग) को खुला, साफ तथा हवादार हो चाहिये।

12. चारदीवारी के अन्दर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में रखना चाहि क्योंकि सूर्योदय के समय सूर्य से विटामिन डी की प्राप्ति होती है जो श की ऊर्जा को बढ़ाता है। सूरज घड़ी के अनुसार पूरब से उदय होकर दोप में दक्षिण एवं सायं में पश्चिम की ओर अस्त होता है।पूरब से कम स्थान उत्तर में, उससे कम स्थान पश्चिम में तथा सबसे कम स्थान दक्षिण में छोड़ना चाहिये। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में तथा सबसे कम पूर्व दिशा में होनी चाहिये।

13. घर के ईशान कोण में पूजा घर, कुआँ, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम अथवा बेसमेन्ट बनाना शुभ होता है।

14. घर की पूर्व दिशा में बरामदा, कुआँ, बगीचा व पूजाघर बनाया जा सकता है। घर के आग्नेय कोण में रसोईघर, बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में मुख्य शयनकक्ष, भण्डार गृह, सीढ़ियाँ व ऊँचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं। घर के नैर्ऋत्य कोण में शयनकक्ष, भारी सामान का स्टोर, सीढ़ियाँ, ओवरहेड वाटर टैंक, शौचालय व ऊँचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं।

15. घर के वायव्य कोण में अतिथि घर, कुँआरी कन्याओं का शयनकक्ष, कक्ष, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियाँ, अन्नभण्डारकक्ष व शौचालय बनाये जा सकते हैं।

16. घर की उत्तर दिशा में कुआँ, तालाब, बगीचा, पूजाघर, तहखाना, स्वागतकक्ष,
कोषागार व लिविंग रूम बनाये जा सकते हैं।

 17. भवन के द्वार के सामने मन्दिर, खम्भा व गड्ढा अशुभ होते हैं।

18. सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिये अथवा मतान्तर से अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिये।

19. घर के पूजा स्थान में 7 इंच से बड़ी मूर्तियाँ स्थापित नहीं करनी चाहिये। यदि मूर्ति पहले से है। तो उसकी विधि-विधान से पूजा करते रहें।

 20. घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्यदेव की प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमतीचक्र व दो शालिग्राम नहीं रखना चाहिये।

21. घर में सभी कार्य पूरब या उत्तर मुख होके करना लाभदायक होता है जैसे भोजन करना, पढ़ाई करना, सोफे या कुर्सी पर बैठने वाले का मुख पूरब या उत्तर तरफ हो

22. सीढ़ियों के नीचे पूजा घर शौचालय, रसोई का निर्माण नहीं करना चाहिए, घर में सीढ़ियों संख्या 3,5,7, ऐसे होनी चाहिए

23. पूरब की दीवार पर शौचालय, नही रखे

आइये जाने हनुमान चालीसा का हिंदी अनुवाद ?

हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं!

क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?

बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो। इसलिए हर व्यक्ति को इसके फल के लिए अर्थ का ज्ञान आवश्यक है।

श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित!!

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।

बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

📯《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★

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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★

📯《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★

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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★

📯《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★

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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★

📯《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★

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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★

📯《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★

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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★

📯《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★

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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★

📯《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★

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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★

📯《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★

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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★

📯《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★

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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★

📯《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★

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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★

📯《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★

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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★

📯《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★

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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★

📯《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★

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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★

📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★

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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★
📯《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★

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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★

📯《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★

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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★

📯《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★

📯《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★

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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★

📯《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★

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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★

📯《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★

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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★

📯《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★

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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★

📯《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★

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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★

📯《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★

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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★

📯《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★

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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★

📯《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★

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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★

📯《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★

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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★

📯《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★

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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★

📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★

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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★

📯《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★

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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★

📯《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★

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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★

📯《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★

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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★

📯《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★

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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★

📯《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★

1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★

2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★

3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★

4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★

5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★

6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★

7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★

8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★

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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★

📯《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।

तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★

📯《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★

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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★

📯《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★

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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★

📯《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★

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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★

📯《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★

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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★

📯《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★

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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★

📯《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★

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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★

📯《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★

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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★

📯《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★

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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★

📯《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
                🌻🙏जय जय सियाराम 🙏🌻

आइये जाने अक्षौहिणी सेना का महत्त्व औऱ युद्ध के नियम ?

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                    ⚡ अक्षौहिणी सेना ⚡

आधुनिक काल में बड़े बड़े शक्तिशाली देशों के बीच आधुनिक अस्त्रों के साथ चल रहे छोटे छोटे द्वंद युद्धों में पूरी सेना सम्मलित की जाती हैं इसके बाद भी युद्ध में पूर्ण विजय नही घोषित हो पाती। वीर भूमि भारत में भी धर्म स्थापना के लिए वीरों के बीच कई युगों में महत्वपूर्ण युद्ध हुए। युग युगांतर का सबसे भीषण युद्ध महाभारत युद्ध भी इसी भारत भूमि पर हुआ, जिसमे कई बाहुबलि वीरों की सर्वशक्तिशाली सेनाएं सम्मालित हुई, पर प्रमुखता से अदम्य अद्भुत अलौकिक सर्वशक्तिशाली सेना वासुदेव कृष्ण की अक्षौहिणी सेना मानी जाती थी। 

अक्षौहिणी प्राचीन भारत में सेना का एक माप हुआ करता था। महाभारत के युद्ध में कुल १८ अक्षौहिणी सेना लड़ी थी। जिसमें से कौरवों के पास ११ अक्षौहिणी सेना थी और पाण्डवों के पास ७ अक्षौहिणी सेना थी।

 लेकिन वास्तव में एक अक्षौहिणी सेना कितनी होती है? इसके लिए, हम महाभारत के प्रमाणों से जानने की कोशिश करेंगे कि एक अक्षोहिणी सेना में कुल कितने पैदल, घुड़सवार, रथसवार और हाथीसवार होते है? 

प्राचीन भारत में, एक अक्षौहिणी सेना के चार अंग होते थे। जिस सेना में ये चारों अंग होते थे, वह चतुरंगिणी सेना कहलाती थी। वह चार अंग निम्नलिखित होती थी -

१. सैनिक (पैदल सिपाही)
२. घोड़े (घुड़सवार)
३. गज (हाथी सवार)
४. रथ (रथ सवार)

अब यदि घोड़े की बात करे, तो एक घोड़े पर एक सवार बैठा था। ऐसे ही हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक तो पीलवान (हाथी हौकने वाला) और दूसरा लड़ने वाला योद्धा। इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और काम से काम तीन चार घोड़े रहे होंगे। यह सब मिल कर एक चतुरंगिणी सेना कहलाती है।

महाभारत के आदिपर्व अध्याय २ के श्लोक १७ से २२ तक में अक्षौहिणी सेना के भाग पर विस्तार से बताया गया है। अतः उन श्लोकों के अनुसार एक अक्षौहिणी सेना नौ भागों में विभक्त है। उनका नाम कर्मशः इस प्रकार है - पत्ति, सेनामुख, गुल्म, गण, वाहिनी, पृतना, चमू, अनीकिनी और अक्षौहिणी। 

सौतिरुवाच- 
एको रथो गजश्चैको नराः पञ्च पदातयः।
त्रयश्च तुरगास्तज्ज्ञैः पत्तिरित्यभिधीयते॥१९॥
पत्तिं तु त्रिगुणामेतामाहुः सेनामुखं बुधाः।
त्रीणि सेनामुखान्येको गुल्म इत्यभिधीयते॥२०॥
त्रयो गुल्मा गणो नाम वाहिनी तु गणास्त्रयः।
स्मृतास्तिस्रस्तु वाहिन्यः पृतनेति विचक्षणैः॥२१॥
चमूस्तु पृतनास्तिस्रस्तिस्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।
अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधाः॥२२॥
- महाभारत आदिपर्व अध्याय २.१९-२२

अर्थात्‌ : उग्रश्रवा जी ने कहा एक रथ, एक हाथी, पांच पैदल सैनिक और तीन घोड़े बस, इन्हीं को सेना के सर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है। इसी पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान पुरुष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखों' को एक “गुल्म” कहा जाता है। तीन गुल्म का एक 'गण' होता है, तीन गण की एक 'वाहिनी' होती है और तीन वाहिनियों को सेना का रहस्य जानने वाले विद्वानों ने 'पृतना' कहा है। तीन पृतना की एक 'चमू” तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक “अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन हैं।

महाभारत में केवल गज, रथ और घोड़े की कुल संख्या बताई गयी है, उनको चलने वाले व उनपर सवार होकर लड़ने वालो की संख्या नहीं बताई है। अतः यदि अनुमान लगाया जाये, तो घोड़े पर एक घुड़सवार होगा, ऐसे ही हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक तो पीलवान (हाथी हांकने वाला) और दूसरा लड़ने वाला योद्धा। इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य रहे होंगे। अतः १ घुड़सवार, २ हाथी सवार और २ रथ सवार होंगे। 

अतएव महाभारत में बताए गए गज (21870), रथ (21870) और घुड़सवार (65610) की संख्या को उन पर सवार व्यक्तियों से गुणा करे, तो गज पर 43740, रथ पर 43740 और चुड़सवार 65610 होंगे। जो कुल 153090 ( एक लाख तिरपन हजार नब्बे) होते है। और इन संख्या को पैदल सिपाहियों (109350) के साथ जोड़ से तो कुल 262440 ( दो लाख बासठ हजार चार सौ चालीस) मनुष्य एक अक्षौहिणी सेना में होते है।

पूर्ण अक्षौहिणी गणित -

१. पत्ति - १ गज + १ रथ + ३ घुड़सवार + ५ पैदल सिपाही

२. सेनामुख - ३ पत्ति = ३ गज + ३ रथ + ९ घुड़सवार + १५ पैदल सिपाही

३. गुल्म - ३ सेनामुख = ९ गज + ९ रथ + २७ घुड़सवार + ४५ पैदल सिपाही

४. गण - ३ गुल्म = २७ गज + २७ रथ + ८१ घुड़सवार + १३५ पैदल सिपाही

५. वाहिनी - ३ गण = ८१ गज + ८१ रथ + २४३ घुड़सवार + ४०५ पैदल सिपाही

६. पृतना - ३ वाहिनी = २४३ गज + २४३ रथ + ७२९ घुड़सवार + १२१५ पैदल सिपाही

७. चमू - ३ पृतना = ७२९ गज + ७२९ रथ + २१८७ घुड़सवार + ३६४५ पैदल सिपाही

८. अनीकिनी - ३ चमू = २१८७ गज + २१८७ रथ + ६५६१ घुड़सवार + १०९३५ पैदल सिपाही
९. अक्षौहिणी - १० अनीकिनी = २१८७० गज + २१८७० रथ + ६५६१० घुड़सवार + १०९३५० पैदल सिपाही

कौरव सेना -
11 अक्षौहिणी कुरु सेना का गठन हस्तिनापुर साम्राज्य द्वारा संशप्तक, त्रिगर्त, नारायण सेना, सिंधु सेना और मद्र के शल्य जैसी जातियों के साथ गठबंधन में किया गया था। 

प्रमुख सेनापति- भीष्म (10 दिन), द्रोण (5 दिन), कर्ण (2 दिन), शल्य (1 दिन), अश्वत्थामा ( दुर्योधन के भीम से गदा युद्ध हारने के बाद )

कौरव सेना और दुर्योधन का पक्ष -

- भगदत्त , प्राग्जोतिषपुरा के राजा - 1 अक्षौहिणी
- मद्र के राजा शल्य - 1 अक्षौहिणी
- महिष्मति की नील - 1 अक्षौहिणी (दक्षिण से)
- कृतवर्मा ( कृष्ण की यादवों की नारायणी सेना) - 1 अक्षौहिणी
- जयद्रथ (सैंधव) - 1 अक्षौहिणी
- कंभोज के राजा सुदक्षिण - 1 अक्षौहिणी (उनके सैनिकों में यवन और शक थे)
- विंदा और अनुविंदा (अवंती से) - 1 अक्षौहिणी
- कलिंग सेना - 1 अक्षौहिणी
- गांधार का शकुनि - 1 अक्षौहिणी
- त्रिगत की सुशर्मा - 1 अक्षौहिणी
- कौरव और अन्य सहयोगी - 1 अक्षौहिणी

पांडव सेना- 
7 अक्षौहिणी का एक गठबंधन है, मुख्य रूप से पांचाल और मत्स्य सेना, भीम के पुत्र की राक्षस सेना, और वृष्णि -यादव नायक। 

पांडव सेना और उनके सहयोगी-

- वृष्णि वंश के सात्यकि - 1 अक्षौहिणी
- कुन्तिभोज - 1 अक्षौहिणी
- धृष्टकेतु, चेदिस के राजा - 1 अक्षौहिणी
- जरासंध के पुत्र सहदेव - 1 अक्षौहिणी (मगध से)
- द्रुपद अपने पुत्रों सहित - 1 अक्षौहिणी
- मत्स्य के राजा विराट - 1 अक्षौहिणी
- पांड्य, चोल और अन्य सहयोगी - 1 अक्षौहिणी

एक अक्षौहिणी बनाने वाली 4 प्रकार की इकाइयाँ शतरंज के पूर्ववर्ती चतुरंगा में भी देखी जा सकती हैं।

१ अक्षौहिणी में-
२१,८७० रथ
२१,८७० हाथी
१०९,३५० पैदल सैनिक
६५,६१० घोड़े

कुल मिला कर सेना संख्या २१८,७०० = १ अक्षौहिणी

पांडव सेना - १,५३०,९०० (७ अक्षौहिणी)
कौरव सेना - २,४०५,७०० (११ अक्षौहिणी)
कुल सेना - ३,९३६,६०० (१८ अक्षौहिणी)

वीरगति योद्धाओ कि संख्या - ३,९३६,५९०

युद्ध के पश्चात कुल जीवित योद्धाओं की संख्या - १०

पांडवो में से जीवित योद्धा (७)
श्रीकृष्ण
युधिष्ठिर
भीम
अर्जुन
नकुल
सहदेव
सात्यकी

कौरवो में से जीवित योद्धाओं की संख्या (३)
कृपाचार्य
कृतवर्मा
अश्वत्थामा
उपर्युक्त गज (हाथी), रथ, घुड़सवार तथा सिपाही की गणना महाभारत के आदिपर्व अध्याय २ श्लोक २३-२६ से लिया गया है।  

श्लोक :
अक्षौहिण्याः प्रसङ्ख्यानं रथानां द्विजसत्तमाः।
सङ्ख्यागणिततत्त्वज्ञैः सहस्राण्येकविंशतिः॥२३॥
शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्ततिः।
गजानां तु परीमाणमेतदेवात्र निर्दिशेत्॥२४॥
ज्ञेयं शतसहस्रं तु सहस्राणि तथा नव।
नराणामपि पञ्चाशच्छतानि त्रीणि चानघाः॥२५॥
पञ्चषष्टिसहस्राणि तथाश्वानां शतानि च।
दशोत्तराणि षट्प्राहुर्यथावदिह सङ्ख्यया॥२६॥
- महाभारत आदिपर्व अध्याय २.२३-२६

अर्थात्‌ :
(उम्रश्रवा जी ने कहा) श्रेष्ठ ब्राह्मणों! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही रहनी चाहिये। निष्पाप ब्राह्मणों! एक अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास (109350) जाननी चाहिये। एक अक्षौहिणी सेना में घोड़ों की ठीक ठीक संख्या पैंसठ हजार छः सौ दस (65610) कही गयी है।

आपके घर का एवं आपका शुभ मंगल कैसे हो?

आपके घर का एवं आपका शुभ मंगल कैसे हो?

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1.घर के मुख्य द्वार पर सूखे फूल, पत्ते,  हटा दें। इसका मतलब यह है कि घर में शुभ ऊर्जा के प्रवेश में हटाने से कोई बाधा नहीं आती है।

2. घर के सभी कमरों में घड़ियां उत्तर या पूर्व की दीवार पर लगानी चाहिए ताकि घड़ी देखते समय हमारा मुख पूर्व और उत्तर या शुभ दिशा की ओर रहे।

3. बेहतर स्वास्थ्य के लिए उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोएं, यानी आर्थिक, मानसिक और शारीरिक प्रगति अच्छी होगी।

4. बिस्तर के सामने दर्पण या दर्पण वाली अलमारी न रखें। इससे शरीर में ऊर्जा की हानि होती है और बीमारियाँ बढ़ती हैं।

5.  घर में सुखी-समृद्ध जीवन के लिए टूटे हुए दर्पण, टूटे हुए खिलौने, टूटे हुए फर्नीचर आदि। वस्तु का भंडारण न करें.

6.  भरपूर तरक्की और सफल सक्रिय जीवन के लिए घर में बंद घड़ियां नहीं रखनी चाहिए।

7.  सोते समय बिस्तर घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में होना चाहिए, इसका मतलब अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि है।

8.  घर के 25 से 60 वर्ष के कमाने वाले व्यक्ति को उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोना चाहिए। उत्तर दिशा प्रगतिशील है अत: कोई भी कार्य उत्तर दिशा की ओर मुख करके करें।
8.शयनकक्ष में भगवान की मूर्ति, फोटो नई होनी चाहिए

9. सुख-समृद्धि के लिए घर के मुख्य द्वार के सामने बालाजी की तस्वीर लगानी चाहिए।

10. घर में नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश को रोकने के लिए मुख्य द्वार के पास तुलसी अवश्य लगानी चाहिए।

11. सप्ताह में एक बार नमक के पानी से फर्श पर पोछा लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

12. नया घर बनवाते या खरीदते समय घर का आकार आयताकार या वर्गाकार होना चाहिए।

13.  नया घर खरीदते समय पहली और आखिरी मंजिल पर घर खरीदने से बचें।

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