Tuesday, 19 November 2024

क्या आप जानते है? हिंदू संस्कृति के मुख्य तत्व:क्या है?


1. धर्म (Religion)...

हिंदू धर्म, जिसे "सनातन धर्म" भी कहा जाता है, हिंदू संस्कृति का केंद्र बिंदु है।
इसमें ईश्वर के अस्तित्व, सत्य, धर्म, कर्म और मोक्ष जैसे सिद्धांतों का पालन किया जाता है। हिंदू धर्म में विभिन्न देवताओं और देवियों की पूजा की जाती है, जिनमें प्रमुख भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा, लक्ष्मी, दुर्गा, गणेश, सरस्वती आदि हैं।

2. आध्यात्मिकता और ध्यान..

हिंदू संस्कृति में आत्मा, परमात्मा और ब्रह्मा के सिद्धांतों का गहरा महत्व है। साधना, योग, और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान और परमात्मा से एकता की ओर अग्रसर होता है।
योग, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास का संयोग है, हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

3. कर्म और पुनर्जन्म..

हिंदू संस्कृति में कर्म का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा किए गए कर्म (अच्छे और बुरे) उसके अगले जन्म को प्रभावित करते हैं। पुनर्जन्म की अवधारणा भी हिंदू धर्म में प्रमुख है,
जिसके अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा एक नए शरीर में जन्म लेती है, और यह चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक आत्मा मोक्ष (मुक्ति) को प्राप्त नहीं कर लेती।

4. वेद और उपनिषद..

हिंदू संस्कृति का साहित्यिक आधार वेदों और उपनिषदों पर है। वेदों में ज्ञान, भक्ति, संगीत, और यज्ञ विधियों का उल्लेख है।
उपनिषदों में ब्रह्म और आत्मा के गहरे दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। ये ग्रंथ भारतीय जीवन और संस्कृति की नींव के रूप में माने जाते हैं।

5. संस्कार और परंपराएँ...

हिंदू संस्कृति में जीवन के हर चरण में संस्कारों का पालन किया जाता है। ये संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक होते हैं, जैसे- नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार (जनेऊ), विवाह संस्कार, अंत्येष्टि संस्कार आदि।
ये संस्कार व्यक्ति के जीवन को धार्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सही दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

6. त्योहार और उत्सव...

हिंदू संस्कृति में विभिन्न त्योहारों का बहुत महत्व है। ये त्योहार धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उल्लास के प्रतीक होते हैं। कुछ प्रमुख हिंदू त्योहारों में दीवाली, होली, दशहरा, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, गंगाष्टमी और रक्षाबंधन आदि शामिल हैं।
इन त्योहारों के दौरान पूजा-अर्चना, उपवासी व्रत, मेल-मिलाप, और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। 

7. संस्कृत और भारतीय साहित्य

संस्कृत हिंदू संस्कृति की प्रमुख भाषा रही है। हिंदू धर्म और संस्कृति की अनेक धार्मिक और दार्शनिक किताबें संस्कृत में लिखी गईं,जैसे भगवद गीता, रामायण, महाभारत, पुराण आदि। इन ग्रंथों में जीवन के सिद्धांतों, कर्म, धर्म, भक्ति और जीवन की राह को समझाया गया है।

8. परिवार और समाज,,

हिंदू संस्कृति में परिवार का बहुत बड़ा महत्व है। यह संस्कृति परंपराओं, एकता और सामूहिकता पर आधारित है। भारतीय परिवार में वृद्धों का सम्मान किया जाता है और पारिवारिक संबंधों में स्नेह, एकजुटता और आपसी सहयोग को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है।


9. आधुनिक हिंदू संस्कृति...

आज के समय में, हिंदू संस्कृति को पारंपरिक और आधुनिक संदर्भ में देखा जा सकता है। कई धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाएँ आज भी जीवित हैं, जबकि कुछ प्रथाओं में परिवर्तन और सुधार हुआ है।


भारतीय समाज में विश्वभर के लोग हिंदू धर्म, योग, आयुर्वेद, वेदांत, और भारतीय दर्शन से प्रेरित होकर जीवन जीने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

हिंदू संस्कृति का वैश्विक प्रभाव:...

हिंदू संस्कृति ने पूरी दुनिया में कई स्थानों पर अपना प्रभाव छोड़ा है। भारतीय योग, ध्यान, आयुर्वेद, और भारतीय दर्शन के सिद्धांत आजकल पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गए हैं।
हिंदू संस्कृति के आचार्य और संतों के शिक्षाओं ने दुनियाभर के लोगों को प्रभावित किया है। उदाहरण के तौर पर, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी जैसे महान व्यक्ति न केवल भारत, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रभावशाली रहे हैं।
हिंदू संस्कृति न केवल धर्म या आस्थाओं का हिस्सा है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी एक समृद्ध और बहुरंगी परंपरा है। यह संस्कृति व्यक्ति को आत्म-ज्ञान, समर्पण,और संसार में हर परिस्थिति को संतुलित तरीके से जीने की प्रेरणा देती है। हिंदू संस्कृति का मूल उद्देश्य जीवन को एक उच्च उद्देश्य, शांति, और मोक्ष की ओर अग्रसर करना है। 

जयतु सनातन..!!






Saturday, 16 November 2024

भगवान सूर्य के पुत्र श्री शनिदेव के बारे ने जाने ...!


भगवान सूर्य तथा छाया के पुत्र हैं, इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है...दो मिनट की ये कहानी रौंगटे खड़े कर देगी..अंत तक जरुर पढ़े🧵

वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मपुराण के अनुसार, बचपन से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। बड़े होने पर इनका विवाह चित्ररथ की कन्या से किया गया। इनकी पत्नि सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थीं।
एक बार पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से वे इनके पास पहुचीं पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में मग्न थे। इन्हें बाह्य जगत की कोई सुधि ही नहीं थी। पत्नि प्रतिक्षा कर थक गयीं तब क्रोधित हो उसने इन्हें शाप दे दिया कि आज से तुम जिसे देखोगे वह नष्ट हो जाएगा।
ध्यान टूटने पर जब शनिदेव ने उसे मनाया और समझाया तो पत्नि को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किन्तु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें ना थी। तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा किसीका अनिष्ट नहीं होता है
शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण इन्द्रनीलमणी के समान है। वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। ये अपने हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं।

यह मकर व कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। इनका सामान्य मंत्र है - "ऊँ शं शनैश्चराय नम:" इसका श्रद्धानुसार रोज एक निश्चित संख्या में जाप करना चाहिए।

शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू कर सकते हैं परंतु श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी है । इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा की विधि सहित पूजन करनी चाहिए।
शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए। शनि देव के नाम से दीपोत्सर्ग करना चाहिए।
शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।
शनि की अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि है । शनि अच्छे कर्मो के फलदाता भी है। शनि बुर कर्मो का दंड भी देते है।
जीवन के अच्छे समय में शनिदेव का गुणगान करो। आपतकाल में शनिदेव के दर्शन करो। मुश्किल पीड़ादायक समय में शनिदेव की पूजा करो। दुखद प्रसंग में भी शनिदेव पर विश्वास करो। जीवन के हर पल शनिदेव की प्रति कृतज्ञता प्रकट करो।
जय शनिदेव, जय सनातन धर्म ✨🕉️💚
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Thursday, 14 November 2024

प्रश्न ये हैं कि “श्री राम” को आखिर “चौदह वर्ष” का ही वनवास क्यों ?


क्यों नहीं चौदह से कम या चौदह से ज्यादा ?

भगवान् राम ने एक आदर्श पुत्र, भाई, शिष्य, पति, मित्र और गुरु बनकर ये ही दर्शाया कि व्यक्ति को रिश्तो का निर्वाह किस प्रकार करना चाहिए।

राम का दर्शन करने पर हम पाते है कि अयोध्या हमारा शरीर है जो की सरयू नदी यानि हमारे "मन" के पास है। अयोध्या का एक नाम अवध भी है। (अवध) अर्थात जहाँ कोई या अपराध न हों।

जब इस शरीर का चंचल मन सरयू सा शांत हो जाता है और इससे कोई अपराध नहीं होता तो ये शरीर ही अयोध्या कहलाता है।”


शरीर का तत्व (जीव), इस अयोध्या का राजा दशरथ है। “दशरथ का अर्थ हुआ वो व्यक्ति जो इस शरीर रूपी रथ में जुटे हुए दसों इन्द्रिय रूपी घोड़ों (५ कर्मेन्द्रिय ५ ज्ञानेन्द्रिय) को अपने वश में रख सके।”

तीन गुण सतगुण, रजोगुण और तमोगुण दशरथ तीन रानियाँ कौशल्या, सुमित्रा और कैकई हैं।” दशरथ रूपी साधक ने अपने जीवन में चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ काम और मोक्ष को राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में प्राप्त किया था।

तत्वदर्शन करने पर हम पाते हैं कि धर्मस्वरूप भगवान् राम स्वयं "ब्रह्म" हैं। शेषनाग भगवान् लक्ष्मण "वैराग्य" हैं, माँ सीता शांति और "भक्ति" हैं और बुद्धि का "ज्ञान" हनुमान जी हैं।

रावण घमंड का, कुभंकर्ण अहंकार, मारीच लालच और मेंघनाद काम का प्रतीक है। मंथरा कुटिलता, शूर्पनखा काम और ताड़का क्रोध है।

चूँकि काम क्रोध कुटिलता ने संसार को वश में कर रखा है इसलिए प्रभु राम ने सबसे पहले क्रोध यानि ताडका का वध ठीक वैसे ही किया जैसे भगवान् कृष्ण ने पूतना का किया था।

“नाक और कान वासना के उपादान माने गए है, इसलिए प्रभु ने शुपर्नखा के नाक और कान काटे। भगवान् ने अपनी प्राप्ति का मार्ग स्पष्ट रूप से दर्शाया है। उपरोक्त भाव से अगर हम देखे तो पाएंगे कि भगवान् सबसे पहले वैराग्य (लक्ष्मण) को मिले थे।”

फिर वो भक्ति (माँ सीता) और सबसे बाद में ज्ञान 

(भक्त शिरोमणि हनुमानजी) के द्वारा हासिल किये गए थे। जब भक्ति (माँ सीता) ने लालच (मारीच) के छलावे में आ कर वैराग्य (लक्ष्मण) को अपने से दूर किया तो घमंड (रावण) ने आ कर भक्ति की शांति 

(माँ सीता की छाया) हर ली और उसे ब्रम्हा (भगवान्) से दूर कर दिया।

भगवान् ने चौदह वर्ष के वनवास के द्वारा ये समझाया कि अगर व्यक्ति जवानी में चौदह पांच ज्ञानेन्द्रियाँ (कान, नाक, आँख, जीभ, चमड़ी), पांच कर्मेन्द्रियाँ (वाक्, पाणी, पाद, पायु, उपस्थ), तथा मन, बुद्धि,चित और अहंकार को वनवास में रखेगा तभी प्रत्येक मनुष्य अपने अन्दर के घमंड या रावण को मार पायेगा।

रावण की अवस्था में 14 ही वर्ष शेष थे। 

प्रश्न उठता है ये बात कैकयी कैसे जानती थी?

बन्धुओं ये घटना घट तो रही है अयोध्या परन्तु योजना देवलोक की है।

अजसु पिटारी तासु सिर, गई गिरा मति फेरि।

सरस्वती ने मन्थरा की मति में अपनी योजना की कैसेट फिट कर दी, उसने कैकयी को वही सब सुनाया समझाया कहने को उकसाया जो सरस्वती को इष्ट था। इसके सूत्रधार हैं स्वयं श्रीराम, वे ही निर्माता निर्देशक तथा अभिनेता हैं, सूत्रधार उर अन्तरयामी।

मेघनाद को वही मार सकता था जो 14 वर्ष की कठोर साधना सम्पन्न कर सके, जो निद्रा को जीत ले, ब्रह्मचर्य का पालन कर सके, यह कार्य लक्ष्मण द्वारा सम्पन्न हुआ, आप कहेंगे वरदान में लक्ष्मण थे ही नहीं तो इनकी चर्चा क्यों?

परन्तु भाई राम के बिना लक्ष्मण रह ही नहीं सकते, श्रीराम का यश यदि झंडा है तो लक्ष्मण उस झंडा के डंडा हैं, बिना डंडा के झंडा..


1. माता कैकयी यथार्थ जानती है, जो नारी युद्ध भूमि में दशरथ के प्राण बचाने के लिये अपना हाथ रथ के धुरे में लगा सकती है ,रथ संचालन की कला मे दक्ष हैं,,वह राजनैतिक परिस्थितियों से अनजान कैसे रह सकती है।


2. मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैल जाये और यह बिना तप के रावण वध के सम्भव न था अतः...


3. मेरे राम केवल अयोध्या के ही सम्राट् न रह जाये विश्व के समस्त प्राणियों हृहयों के सम्राट बनें, उसके लिये अपनी साधित शोधित इन्द्रियों तथा अन्तःकरण को पुनश्च तप के द्वारा तदर्थ सिद्ध करें।


4. सारी योजना का केन्द्र राक्षस वध है अतः दण्डकारण्य को ही केन्द्र बनाया गया. महाराज अनरण्यक के उस शाप का समय पूर्ण होने में 14 ही वर्ष शेष हैं जो शाप उन्होंने रावण को दिया था कि मेरे वंश का राजकुमार तेरा वध करेगा।


!! जय श्री सीताराम !!




क्या आप जानते है? हिंदू संस्कृति के मुख्य तत्व:क्या है?

1. धर्म (Religion)... हिंदू धर्म, जिसे "सनातन धर्म" भी कहा जाता है, हिंदू संस्कृति का केंद्र बिंदु है। इसमें ईश्वर के ...