मकर संक्रांति का पर्व भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह केवल खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, धार्मिक, और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। आइए इसे गहन पौराणिक संदर्भों और कथाओं के माध्यम से समझें।
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🌄 सूर्य देव का मकर राशि में प्रवेश: पौराणिक महत्व
मकर संक्रांति का उल्लेख वेदों, उपनिषदों और पुराणों में मिलता है। ब्रह्मांडीय दृष्टि से, यह दिन सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है, जिसे "उत्तरायण" कहा जाता है। महाभारत के अनुसार, उत्तरायण काल को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को रात्रि माना गया है। यह काल शुभता और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। भीष्म पितामह ने भी अपने देहत्याग के लिए उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी।
स्कंद पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि देव (मकर राशि के स्वामी) के घर जाते हैं। यह पिता-पुत्र के मिलन का प्रतीक है, जिससे रिश्तों में सामंजस्य और प्रेम का संदेश मिलता है।
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🛕 गंगा स्नान और मकर संक्रांति का दिव्य संबंध
पद्म पुराण में वर्णित है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। कथा के अनुसार, इस दिन गंगा मां ने भगवान विष्णु के आदेश पर भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर कपिल मुनि के आश्रम में अपने जल से पूर्वजों को तार दिया। यही कारण है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है।
माना जाता है कि इस दिन गंगा, यमुना, सरस्वती और अदृश्य पवित्र नदियों का संगम प्रयागराज (महाकुंभ क्षेत्र) में होता है। स्कंद पुराण कहता है:
"माघे मासे महादेव, मकरस्थे दिवाकरे।
स्नानं दानं तपः कार्यं, मुक्त्यर्थं विप्रसम्मतम्।।"
अर्थात, माघ मास में, जब सूर्य मकर राशि में हो, तब स्नान, दान और तप करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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🙏 दान और तप का महत्व: विष्णु और शंकर की कथा
मकर संक्रांति को "दान का पर्व" भी कहा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का संहार करके उनके सिरों को मंदराचल पर्वत पर स्थापित किया। यह सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक है। उसी समय से मकर संक्रांति पर अन्न, वस्त्र, और तिल दान करने की परंपरा आरंभ हुई।
महाभारत में लिखा गया है:
"तिल दानं तथा स्नानं सर्वपाप प्रणाशनम्।"
तिल से जुड़ी परंपरा के पीछे यह मान्यता है कि तिल के दान और सेवन से मनुष्य की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और जीवन में शांति और सुख का संचार होता है।
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✨ मकर संक्रांति और महाकुंभ का दिव्य संगम
महाकुंभ और मकर संक्रांति का सीधा संबंध है। भागवत पुराण में वर्णित "समुद्र मंथन" की कथा के अनुसार, अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक को वह चार स्थान कहा गया जहां ये बूंदें गिरीं। मकर संक्रांति के दिन इन स्थानों पर स्नान करने से साधक को अमृत की प्राप्ति जैसी अनुभूति होती है।
स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन प्रयागराज में स्नान करने से 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना पुण्य प्राप्त होता है। महाकुंभ स्नान आत्मा की शुद्धि का अद्भुत माध्यम है, जो मनुष्य को उसकी सांसारिक और आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ने में सहायता करता है।
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🌅 एक साधक की अद्भुत कथा
पौराणिक काल में, एक ऋषि थे, ऋचीक मुनि, जो गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। मकर संक्रांति के दिन, उन्होंने गंगा में स्नान किया और सूर्य देव का ध्यान करते हुए तिल और गुड़ का दान किया। उसी रात, उनके सपने में भगवान विष्णु ने दर्शन दिए और कहा, "जो व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान और पूजा करता है, वह केवल इस जीवन में ही नहीं, बल्कि अगले जन्मों में भी शुभता और मोक्ष प्राप्त करता है।"
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🕉️ आध्यात्मिक शक्तियों का अद्भुत समागम
मकर संक्रांति केवल पर्व नहीं, बल्कि एक ऐसा दिन है जब ब्रह्मांड की ऊर्जा सबसे सकारात्मक होती है। इस दिन:
1. सूर्य पूजा से मानसिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है।
2. गंगा स्नान से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है।
3. दान से धन और समृद्धि में वृद्धि होती है।
4. योग और ध्यान से आध्यात्मिक उन्नति होती है।
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🔔 निष्कर्ष: एक दिव्य संदेश
मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन को सुधारने, आत्मा को शुद्ध करने और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अनुभव करने का अवसर है। इस दिन की पौराणिक महिमा और लाभ को ध्यान में रखते हुए, हर व्यक्ति को इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाना चाहिए।
"सूर्य देव की कृपा से आपका जीवन प्रकाशमय हो, और मकर संक्रांति का पर्व आपको शांति, समृद्धि और मोक्ष की ओर अग्रसर करे।"