#thread
नाड़ियों पर आधारित सब कुछ शास्त्रों के अनुसार हमारे शरीर में 72 हजार 864 नाड़ियाँ हैं, जिनमें 24 नाड़ी प्रमुख होती हैं। उनमें 10 कुछ ज्यादा प्रमुख नाड़ियाँ होती हैं और इन 10 नाड़ियों में 03 अति महत्वपूर्ण नाड़ियां हैं जो कि हमारे जीवन में प्राण संचारित करती हैं, वे हैं इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना।
यहां पर नाड़ी से तात्पर्य धमनियाँ या वे नसें नहीं हैं जिनमें रक्त का प्रवाह होता है बल्कि इनसे तात्पर्य यह है कि वह मार्ग है जिनमें प्राण संचारित होते हैं। जो एक्टिवली हमारे जीवन में कई कार्यों के लिए जिम्मेदार होती है। जो बदलती भी है और इन्हें बदला भी जा सकता है। सामान्यत: दोनों स्वर 60 से 80 मिनिट में बदलते रहते हैं।
आयुर्वेद में यह कहा जाता है कि यदि आप शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं तो तीन नाड़ियों में जो रूकावटें हैं उनको दूर कर लें तो आप जीवन पर्यन्त स्वस्थ रहेंगे मतलब कि नाड़ियों में संतुलन बना लें। हमारी दिन में कई बार ये नाड़ियाँ बदलती रहती हैं। इड़ा मन से संबंधित कार्य के लिए है और पिंगला शरीर से संबधित कार्य के लिए। एक पुरूष है तो एक स्त्रीतत्व नाड़ी। एक नैगेटिव है, तो एक पॉजिटिव। अत: दोनों का संतुलन आवश्यक है। जैसे-जैसे हमारी नाड़ियाँ संतुलित होती जाएंगी हमारा जीवन भी संतुलित होता जाएगा।
बायीं नासिका से जब श्वांस चलती है तो ‘हं’ कहते हैं और दायीं नासिका से श्वांस चलती है तो ‘ठं’ कहते हैं। इस प्रकार ‘हं’ ‘ठं’ से मिलकर हठयोग बना, जिसका सांसों से संंबंध है। इस ज्ञान की विशेषता ये है कि मनुष्य जो भी अपने जीवन में बनना चाहता है, वह सफल होगा कि नहीं इस विद्या से जान सकता है
1. इड़ा नाड़ी
इसे चंद्र स्वर व चंद्र नाड़ी तथा स्त्री नाड़ी भी कहते हैं। यह नाड़ी बायीं नासिका से संचारित होती है। इसका रंग सफेद एवं पीला है। इसका स्वभाव ठंडा, शीतल और पॉजिटिव होता है। यह नाड़ी हमारी मानसिक ऊर्जा से संबंधित है।
यह नारीत्व का भी प्रतिनिधित्व करती है। इसका उद्गम स्थल मूलाधारचक्र है। यह नाड़ी अंतर्मुखी करने वाली है। इसका संबंध हमारे दिमाग के दाहिने (राईट हेमेस्फीयर) से है। इड़ा नाड़ी को अमृत रूप भी माना गया है जो कि जगत का पालन करती है और यह सभी शुभ कार्यों को पूर्ण करती है। जिस व्यक्ति की इड़ा नाड़ी ज्यादा एक्टिव होती है वह व्यक्ति मानसिक रूप से ज्यादा सक्षम होता है।
इस नाड़ी का जैसे जैसे प्रयोग बढ़ता है उसकी बुद्धि का विकास होने लगता है। जब इड़ा स्वर चल रहा हो व यदि पृथ्वी व जल तत्व साथ में हो वह व्यक्ति अपना कोई कार्य किसी वरिष्ठ या ऊंचे ओहदे के व्यक्ति से करवाना चाहता है तो वह उस कार्य में सफल होगा। छोटी यात्राओं के लिए इड़ा स्वर सदैव शुभ रहता है। चंद्र नाड़ी को सम समझा जाता है।
इड़ा नाड़ी में करें ये कार्य:
पूजा करें, आभूषण धारण करें, संग्रह करें, कुआँ बनवाएँ, खम्बे गाढ़ें/पताका लगायें, यात्रा करें, विवाह करें। अलंकार धारण करें, पौष्टिक कार्य करें, मालिक से मिलें/राजकार्य को जायें, रसायन बनाएँ/खाएँ, गृह प्रवेश करें/जमीन खरीदें, खेती करें/उद्यम करें, सन्धि करें/करवाएँ, शिक्षा का शुभारम्भ करें, धार्मिक अनुष्ठान करें, सिद्धि प्राप्त करें। काल का ज्ञान प्राप्त करें, पशु खरीदें तथा घर लाएँ, हाथी घोड़े की सवारी करें, परोपकार करें, नाट्य करें/करवायें, यात्रा के समय गाँव या शहर में प्रवेश करें, स्त्रियाँ अपना बनाव श्रृंगार करें, तपस्या करें/कुण्डलिनी जाग्रत करें, दूर देश की यात्रा करें, गृहस्थ धर्म का पालन करें, धरोहर रखवा लें, तालाब बनवाएँ/पशुशाला बनायें, प्रतिष्ठा करें।
दान करें/मंदिर बनवायें, वस्त्र धारण करें, शान्ति हेतु कार्य करें, दिव्य औषधि बनाएँ/खाएँ, मित्रता स्थापित करें, व्यापार करें/नौकरी करें, यात्रा करें/वाहन खरीदें, भाइयों से मिलें, दीक्षा लें/यज्ञोपवीत पहनें, वेदाध्ययन करें/डिग्री लेने जायें, असम्भव रोगों की चिकित्सा करें/करवाएँ, गाना बजाना करें/ मनोरंजक कार्य करें, तिलक लगाएँ/लगवाएँ, जमीन जायदाद खरीदें, गुरु का स्वागत पूजन करें, विष स्तम्भन या नाश का उपाय करें, योगाभ्यास करें, योगासन करें। ये सभी कार्य जलतत्व में ही करें।
सुषुम्ना नाड़ी
जब प्राण का प्रवाह दोनों नासिका से चल रहा हो उसे सुषम्ना नाड़ी व सुषुम्ना स्वर एवं मध्य नाड़ी भी कहते हैं। इसको संतुलन की नाड़ी भी कहते हैं। इसका प्रयोग ध्यान, योगाभ्यास, प्राणायाम, भक्ति आदि कार्यों में होता है।
चूंकि सुषुम्ना स्वर में अग्नि का वास होता है इसलिये सांसारिक कार्य निषेध माना गया। जब यह स्वर चलता है उस समय कोई भी सांसारिक कार्य सफल नहीं होता। इसलिए सुषुम्ना स्वर में सांसारिक कार्य नहीं करना चाहिये। इस स्वर का समय सामान्यत: चार मिनिट माना जाता है।
वैसे यह हर व्यक्ति की प्रकृति पर भी निर्भर करता है। ऐसा देखा गया है कि जब संध्या का समय होता है तब सुषुम्ना नाड़ी के चलने की संभावना सबसे अधिक होती है। यह नाड़ी न तो नैगेटिव और न पॉजिटिव होती है। न स्त्रीप्रधान होती है न पुरूष प्रधान। सुषुम्ना में स्वर संचालित होता है तो हमारे चक्रों का जागरण होता है और वह कुंडली जागरण का कार्य करती है।
सुषुम्ना नाड़ी में करें ये कार्य:
जब सुषुम्ना स्वर चल रहा हो तब चर व स्थिर कार्य न करें। मकान, मंदिर आदि की प्रतिष्ठा कार्य सुषुम्ना स्वर में नहीं करना चाहिये और न ही परदेश जाना चाहिए। सुषुम्ना स्वर में जो कोई विदेश जायेगा तो दुर्भाग्य, कष्ट और पीढ़ा और उसके चित्त में क्लेश बना रहेगा।
स्वर-परिवर्तन की विधियाँ
जो स्वर चलाना चाहो, उसके विपरीत करवट बदलकर उसी हाथ का तकिया बनाकर लेट जाओ। थोड़ी देर में स्वर बदल जायेगा। जैसे यदि सूर्यस्वर चल रहा है और चंद्र स्वर चलाना है तो दाहिनी करवट लेट जाओ।
कपड़े की गोटी बनाकर या हाथ के अंगूठे से नासिका का एक छिद्र बंद कर दो। जो स्वर चलाना हो, उसे खुला रखो, स्वर बदल जायेगा।
बगल में तकिया दबाकर रखने से भी स्वर बदल जाते हैं।
अनुलोम-विलोम, नाड़ी शोधन, प्राणायाम, पूरक, रेचक, कुम्भक, आसान तथा वज्रासन से भी स्वर-परिवर्तन हो जाता है। स्वर-परिवर्तन में मुँह बन्द रखना चाहिये। नासिका से स्वर-साधन करें। चलित स्वर की प्रधानता में कार्य
No comments:
Post a Comment