वास्तु सम्बन्धी आवश्यक जानकारी
1. भूमि का ढ़लान उत्तर व पूर्व में तथा छत की ढ़लान ईशान में शुभ होती है ।
2. भूखण्ड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जलस्रोत, बोरिंग, तालाब व बावड़ी शुभ होती है।
3. आयताकार, वृत्ताकार व गोमुख भूखण्ड गृह-निर्माण के लिये शुभ होता है वृत्ताकार भूखण्ड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिये।
4. सिंहमुखी भूखण्ड व्यावसायिक भवन हेतु शुभ होता है।
5. भूखण्ड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ होता है।
6. भूखण्ड के उत्तर या पूर्व में मार्ग शुभ होता है। दक्षिण या पश्चिम में मा व्यापारिक स्थल के लिये शुभ होते हैं।
7. यदि आवासीय परिसर में बेसमेन्ट का निर्माण कराना हो तो उसे उत्तर पूर्व में ब्रह्मस्थान को बचाते हुये बनाना चाहिये। बेसमेन्ट की ऊँचाई क से कम 9 फीट होनी चाहिये तथा वह तल से 3 फीट ऊपर होना चाहिये जिससे उसमें प्रकाश व हवा का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।
8. भवन के प्रत्येक मंजिल के छत की ऊँचाई 12 फीट होनी चाहिये किन्तु यह 10 फीट से कम कदापि नहीं होनी चाहिये।
9. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊँचा होना चाहिये एवं पश्चि भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊँचा होना चाहिये। भवन में नैर्ऋत्य सबसे ऊँ व ईशान सबसे नीचा होना चाहिये।
10. खिड़कियाँ घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में क संख्या में होनी चाहिये ।
11. घर के ब्रह्मस्थान (घर का मध्य भाग) को खुला, साफ तथा हवादार हो चाहिये।
12. चारदीवारी के अन्दर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में रखना चाहि क्योंकि सूर्योदय के समय सूर्य से विटामिन डी की प्राप्ति होती है जो श की ऊर्जा को बढ़ाता है। सूरज घड़ी के अनुसार पूरब से उदय होकर दोप में दक्षिण एवं सायं में पश्चिम की ओर अस्त होता है।पूरब से कम स्थान उत्तर में, उससे कम स्थान पश्चिम में तथा सबसे कम स्थान दक्षिण में छोड़ना चाहिये। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में तथा सबसे कम पूर्व दिशा में होनी चाहिये।
13. घर के ईशान कोण में पूजा घर, कुआँ, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम अथवा बेसमेन्ट बनाना शुभ होता है।
14. घर की पूर्व दिशा में बरामदा, कुआँ, बगीचा व पूजाघर बनाया जा सकता है। घर के आग्नेय कोण में रसोईघर, बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में मुख्य शयनकक्ष, भण्डार गृह, सीढ़ियाँ व ऊँचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं। घर के नैर्ऋत्य कोण में शयनकक्ष, भारी सामान का स्टोर, सीढ़ियाँ, ओवरहेड वाटर टैंक, शौचालय व ऊँचे वृक्ष लगाये जा सकते हैं।
15. घर के वायव्य कोण में अतिथि घर, कुँआरी कन्याओं का शयनकक्ष, कक्ष, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियाँ, अन्नभण्डारकक्ष व शौचालय बनाये जा सकते हैं।
16. घर की उत्तर दिशा में कुआँ, तालाब, बगीचा, पूजाघर, तहखाना, स्वागतकक्ष,
कोषागार व लिविंग रूम बनाये जा सकते हैं।
17. भवन के द्वार के सामने मन्दिर, खम्भा व गड्ढा अशुभ होते हैं।
18. सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिये अथवा मतान्तर से अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिये।
19. घर के पूजा स्थान में 7 इंच से बड़ी मूर्तियाँ स्थापित नहीं करनी चाहिये। यदि मूर्ति पहले से है। तो उसकी विधि-विधान से पूजा करते रहें।
20. घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्यदेव की प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमतीचक्र व दो शालिग्राम नहीं रखना चाहिये।
21. घर में सभी कार्य पूरब या उत्तर मुख होके करना लाभदायक होता है जैसे भोजन करना, पढ़ाई करना, सोफे या कुर्सी पर बैठने वाले का मुख पूरब या उत्तर तरफ हो
22. सीढ़ियों के नीचे पूजा घर शौचालय, रसोई का निर्माण नहीं करना चाहिए, घर में सीढ़ियों संख्या 3,5,7, ऐसे होनी चाहिए
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